वॉशिंगटन। जार्जिया रीजेंट्स यूनिवर्सिटी कैंसर सेंटर के वैज्ञानिकों ने डॉ. अहमद चाडली के नेतृत्व में पता लगाया है कि सदियों से जिस भारतीय पेड़ नीम से जलन-सूजन, बुखार और मलेरिया का इलाज करते रहे हैं, वह कैंसरग्रस्त कोशिकाओं (सेल्स) को मारने में भी उपयोगी हो सकता है।
मॉलीक्यूलर चैपरोन प्रोग्राम के जीआरयू कैंसर सेंटर में एक शोधकर्ता और एक अध्ययन के वरिष्ठ लेखक चाडली का कहना है कि कैंसर की कोशिकाएं मोलीक्यूलर चैपरोन्स को अगवा कर लेती हैं जो सामान्य सेल्यूलर काम सुनिश्चित करने के लिए प्रोटीन्स की सुरक्षा करता है और उनका मार्गदर्शन करता है। इसके बाद यह उन जीवित प्रोटीन्स को जीवित रखने के लिए प्रोटीन्स के उत्परिवर्तित (म्यूटेटेड) संस्करणों की भी मदद करता है जो कैंसर प्रभावित कोशिकाओं को बढ़ाने में मदद करता है।
अभी तक दवाइयों के विकास में चैपरोन एचएसपी90 पर ही ध्यान दिया गया है क्योंकि यह म्यूटेटेड प्रोटीन्स की मदद करने में प्रमुख भूमिका निभाता है और इसे आकर्षक कैंसर ड्रग टारगेट बनाता है लेकिन अभी तक एचएसपी90 पदार्थ की नैदानिक प्रभावोत्पादकता निराशाजनक रही है।
इस अध्ययन में चाडली की लैब में एक ग्रेजुएट छात्र चैतन्य पटवर्धन ने पाया कि भारतीय नीम के पेड़ का सार तत्व गेडुनिन प्रोटीन के सहायक या सहयोगी चैपरोन पी 23 की मदद करता है जो एचएसपी90 का एक हिस्सा होता है। यह गेडुनिन ही कैंसर सेल्स को मारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
डॉ. चाडली का कहना है कि भविष्य में इस रिसर्च का हारमोन आधारित कैंसर्स जिनमें वक्षों, प्रोस्टेट और एंडोमीट्रियल कैंसर शामिल हैं, की दवाई बनाने में प्रयोग किया जा सकता है।